सोचा जो चीज नहीं निकला ,
अंकुर पनपा दिल टूट गया !
बोया जो
बीज वही निकला ,
मन कुढ़ पटका सिर -भूल गया !!
बड़े बनें -कुछ रौंद सींच ,
कुछ रोयें हँसे क्या राह सुझाई
बड़ें रहें कुछ मौन नीच -
मुँह खोले कहें -क्या मात भुलाई
!!
जग हँसे ना सो पाला पोषा
उर्वरक नहीं- जल दे- पल भी कैसा !
मन कहे ना जो खाया धोखा ,
उर-परख नहीं -फल दे यह भी कैसा !!
पढना लिखना क्या करना इसे,
कपडे भी बस तन ढांक सके !
करना, पिसना,घर रहना इसे ,
लड़ के जीवन क्षण पार करे !!
पहले दें -दूजे भाई को,
क्या जिस्म नहीं ना मन मेरे !
जल ना दें -सूखे-आई क्यों ,
क्या किस्म नहीं था मन मेरे !!
सुख पाया न -फिर भी सूखे,
दे ना -दे -ले जा काट इसे !
मुस्काया ना फिर भी रूखे,
वो काटें -ये - क्या मार हमें !!
देता जो इसको खाद सभी
चल जाती खुद -कमर नहीं टूटे
देता जो इसको प्यार कभी,
बँटवाती दुःख-भरम यही फूटे !!
भ्रमर कहें क्या लाभ मिले ,
रोते -धोते अब खटके मन !
सुख पायें कहें -क्या पाप किये,
बोलें -डोलें- अब भटकें वन
!!
मन मीत मिला -सुख पाया सभी
अब हार भी -हार-माँ बाप है रोती
!!
जग छीन लिया , गुण पाया यही
अब हार ही हार माँ बाप है रोती !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
३.६.२०११
१.३.१९९४ हजारीबाग मंगलवार
प्रिय मित्रों हमारे इस नए चिट्ठे कविता में भी आप का हार्दिक स्वागत है अपना स्नेह यहाँ भी बरसायें -भ्रमर ५
ReplyDelete